वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
क्या read more जीना, निरंिचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
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